राजस्थानी पाकशाला का राजदूत : दाल बाटी, और चूरमा
दाल बाटी और चूरमा ये वो तिगड़ी है जिसके बिना राजस्थान का जायका फीका है।
बाटी को देखने पर वो मुझे छोटी गेंद जेसी ही लगती है, जिसे पारंपरिक रूप से वहां की महिलाएं कोयले पर सेकती हैं। पर मैं इसे खा कर ये यकीन से कह सकती हूँ कि जरूर इसे स्नेह की आंच पर सेका जाता होगा। जब गरम बाटियों को घी में डुबोया जाता है, तो वहां की हवा में घी की महक घुल जाती है। जब इस बाटी को इसके साथी पंचकुटे दाल के साथ थाली में परोसा जाता है, तो ये उतनी ही आकर्षित और मनोहर लगती है जैसे शादी में एक दुल्हन।
अवश्य ही यही कारण है कि दाल बाटी चूरमा हर राजस्थानी शादी और उत्सव की मेनू का अभिन्न हिस्सा है। राजस्थानी, बाटियों और नमकीन दाल का साथ देने के लिए मीठे चूरमे को अपनी थाली में शामिल करते हैं। आप सभी चूरमे को सिर्फ एक मीठा व्यंजन समझने की भूल मत कीजिएगा। क्योंकि यही तो अपनी उपस्थिति देके इस थाली को पूरा करता है। दाल बाटी और चूरमा को खाने का तरीका उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल इस संसार के रहस्य को जानना है। इसे किसी चमच्च से नहीं बल्कि पहले बाटी के छोटे टुकड़े किए जाते हैं, और फिर इसमें दाल से भरी कटोरी को उड़ेल दिया जाता है, और फिर मीठे चूरमे के साथ खाया जाता है। इस चूरमे को बनाने की एक विशेष और जटिल प्रक्रिया है, जो मारवाड़ के रणबाकुरों की कहानियों की तरह रची बसी है पूरे राजस्थान में। इसका स्वाद और दाल बाटी के साथ इसका संयोजन, बेजोड़ है, वैसे ही जैसे रेत और ऊंट, और इसके साथ खाने का आनंद अलग होता है।
कच्चे प्याज और नींबू को तो आप बिल्कुल नहीं भूल सकते हैं। जैसे एक शादी बिना बारातियों के अधूरी होती है, वैसे ही हमारी दाल बाटी चूरमा की थाली बिना कच्चे प्याज और नींबू के अधूरी होती है।
इस व्यंजन की खासियत यह है कि यह न केवल भोजन है, बल्कि एक सामाजिक और पारंपरिक अनुष्ठान भी है। राजस्थानी शादियों और उत्सवों में यह अभिन्न हिस्सा होता है, जो खासकर विशेष अवसरों पर परिवार और दोस्तों के साथ साझा किया जाता है।
रितु थापा