मैं वो चाँद नहीं…
मैं वो चाँद नहीं जिस पर कविताएं लिखी जाएँ,
क्यों हर बार, हर बात समझने की उम्मीद मुझसे ही की जाए।
क्या मेरे अंतस का रस औरों से भिन्न है,
क्यों मेरे विचलित विचारों से दुनिया खिन्न है।
क्यों इंसान होते हुए मुझसे देवत्व की आस की जाए।
मैं वो चाँद नहीं जिस पर कविताएं लिखी जाएँ,
क्या प्यार के नाम पर मुझे देने वाली पीड़ा सही है,
क्या मुझे बेख़ौफ़, बंजारा, अल्हड़ जीना नहीं है?
क्यों जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बोझ तले,
मेरी भावनाओं को रौंदा जाए।
मैं वो चाँद नहीं जिस पर कविताएं लिखी जाएँ,
तारीफें भी हला हैं,
जिन्होंने मुझसे ठोकर खाने का हक़ छीना,
सही करने की उम्मीदों ने,
छीन लिया मेरा इंसान होकर जीना।
क्यों परिवार, समाज को संवारने की आस
मुझसे ही की जाए।
मैं वो चाँद नहीं जिस पर कविताएं लिखी जाएँ।
अनामिका
PS: अंतस = ह्रदय या दिल, हला : विष या ज़हर